KALYUG
मैं भारत से हूं, जहां पर पृथ्वी पर मनुष्य जीवन चक्र को सनातन धर्म में चार वर्गों में विभाजित किया गया है,जो निम्नलिखित हैं।
१. सतयुग
२. त्रेतायुग
३.द्वापरयुग
४. कलयुग
इन चारों युगों में से कलयुग को बुरा बताया है, मैं उसी को हम किस प्रकार अच्छा करके जीवन का निवार्ह कर सकते हैं, में उसी का उल्लेख कर रहा हूं। मैं ये बताना चाहता हूं कि व्यक्ति की मानसिक सोच से आगे कुछ नहीं है , यदि व्यक्ति अच्छी मानसिकता रखता है तो उसके साथ सदैव ईश्वर अच्छा ही करता है।।
कलयुग
क्या उद्देश्य है जीवन का
कौन सा मार्ग दिखाईं देगा तुम्हें
कहां चलना है कैसे चलना है
बिना राह के तय करना तुम्हें,
कैसा जीवन जी रहे
छल कपट में निहित रहें
अपने कर्मो के बुरे फलों को देखकर
युग को कलयुग कह रहे,
धिक्कार है समाज पर
अंधकार है दिमाग पर
नैतिकता का आभास नहीं
बुरा करें पर अहसास नहीं
अपने कर्मो को कलयुग से जोड़ रहे,
क्या कलयुग है कैसा कलयुग है
क्या समझ तुम्हें भी आ रहा
जब निहित रहोगे अधर्म में
दृष्टि होगी बुरे कर्म में
आचरण जो अपमानित था
वो चलन में समाज के
तभी तो कहोगे उसे कलयुग तुम,
कुछ समझें कैसे आयेगा
अपने आप नहीं उसे
तुम्हारी सोच द्वारा लाया जायेगा
सुधारों अपने विचारों को
धर्म की बांह थाम लो
फिर देखते हैं
कौन कलयुग कैसा कलयुग
यहां राज कर पायेगा।।
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